आज एक ख्याल आया फिर बरबस इस दिल मैं, तनहा फिर हुआ मै भरी महफ़िल मैं. सोचा तू है एक उदासी या किसी की अधूरी ग़ज़ल, या मेरी ही तन्हाई का महज़ एक रुक हुआ पल. शर्मीला हो गया चाँद, बुरखे मैं बाहें अब बादल, दर्द इश्क मै देखा इतना , जितना विधवा की पलकों का बहता काजल. सुनाई कविता किसी तारे ने चांदनी को, हो गयी वो उसकी कायल, चाँद भी हो गया जब अकेला , बेदर्द दर्द भी हुआ तब घायल. रातों मै बिछ गयी रुसवाई , जब दिलों मै आई बेवफाई, इश्क चाँद से ही था चांदनी को , जाने क्यूँ लफ़्ज़ों मै न कह पाई. अश्क बहते हैं आज तक उसके,हम कहते उन्हें चाँद के दाग, इश्क हुआ था सदियों पहेले उसे, लगी है आज तक एक आग. सदियों तक बहें उसकी पलकें , भर गए सात समंदर, खोयी वही चांदनी है तू, इस चाँद सा मेरा दिल का मंज़र