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अश्क..चाँद..के..!





आज एक ख्याल आया फिर बरबस इस दिल मैं,
तनहा फिर हुआ मै भरी महफ़िल मैं.

सोचा तू है एक उदासी या किसी की अधूरी ग़ज़ल,

या मेरी ही तन्हाई का महज़ एक रुक हुआ पल.

शर्मीला हो गया चाँद, बुरखे मैं बाहें अब बादल,

दर्द इश्क मै देखा इतना , जितना विधवा की पलकों का बहता काजल.

सुनाई कविता किसी तारे ने चांदनी को, हो गयी वो उसकी कायल,

चाँद भी हो गया जब अकेला , बेदर्द दर्द भी हुआ तब घायल.

रातों मै बिछ गयी रुसवाई , जब दिलों मै आई बेवफाई,

इश्क चाँद से ही था चांदनी को , जाने क्यूँ लफ़्ज़ों मै न कह पाई.

अश्क बहते हैं आज तक उसके,हम कहते उन्हें चाँद के दाग,

इश्क हुआ था सदियों पहेले उसे, लगी है आज तक एक आग.

सदियों तक बहें उसकी पलकें , भर गए सात समंदर,

खोयी वही चांदनी है तू, इस चाँद सा मेरा दिल का मंज़र

Comments

  1. You write well in Hindi too (If I may suggest to make the fonts bigger, thanks!)

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    1. thanks Indrani :) .. yeah why not .. i did not noticed this until you commented that its hard to read hindi on my blog after i changed the template .. thanks :)

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  2. Mujhe Malum hai--Tune ye bhi teri Chand si aankhon wali ke liye hi likha hoga..;)
    But Seriously Ankur..I just loved reading it..Chand Chupa Aanchal mein gana yaad aa gaya mujhe.. :)

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    1. agar mai na bolu to .. will u believe :p .. because this has been written on completely different aspect .. tried some dark writing though failed :d .. Thank you .. aacha gana hai ;)

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