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बाहर रिमझिम बारिस हो रही थी
तो सोचा क्यू ना आज कुछ बूँदों को
हाथो मै समेत लू
क्यू ना आज फिर काग़ज़ की नाव
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क्यू ना एक बार फिर उस बचपन को
जी लू
वो बचपन जो बस अब एक एहसास है
वो एहसास जो अब इतना खास है
जब भी छुआ है इसने मुझको
हर बार बस एक नमी भरी मुस्कान है
P:S :- The first Hindi Poem I wrote and despite of so many error and flaws i am shamelessly Publishing it :)
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