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लफ्ज़... कुछ.मेरे.कुछ.तुम्हारे.!





इन होठों पे एक बात है ….
पर उसके कुछ लफ्ज़
अब भी किसी के पास हैं….
ख्वाहिशों की डोर में बँधे हुए
कुछ लफ्ज़ जो मेरे पास है…
लफ्ज़ जो किसी के ख़यालों में खोए हैं …
लफ्ज़ जो किसी के आँखों के खाब में
सदियों से सोए नहीं है ….
मेरे लफ़ज़ो का एहसास उनको भी है….
समय की देहलीज़ पे ये राज़
मेरे साथ- साथ अब उनका भी है …


सिमट के भी बिखरे से हैं ये लफ्ज़
उन्हे समेत के रखना है अपने पास
अर्थ खोने के पहले 
 
बाँटना है ...
अपने साथ ...

तुम्हारे साथ ...

पर ना जाने क्यू आज ये
सियाही की डिब्बी भी
कुछ खाली सा है...
मेरी ही तरह..
सायद इन लबज़ो की गिरहें में
या तो समंदर है या खाई..
या बस एक तन्हा दिल की तनहाई...


Comments

  1. Good one, nicely crafted in Hindi.

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  2. Wow! Lovely poetry Ankur! :D How about knitting one for a guest post on my blog? :)

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    1. that will be great *feeling privileged as well as honored* :D.. just tell me what to do ? first time :D

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  3. "Tanha Dil Tanha Safar Dhunde Lafz ko phir kyun yeh Hōṇṭha"..Dude this is amazing composition..Keep it up.. :)

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